लेखनी कविता - गज़ल

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इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें| जितने कमज़र्फ़ हैं महफ़िल से निकाले जायें| मेरा घर आग की लपटों में छुपा है लेकिन, जब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें| ग़म ...

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